1919 की एक बात -- सआदत हसन मंटो

हिन्दी कहानियाँ Hindi Story - A podcast by Rajesh Kumar

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ये 1919 ईस्वी की बात है, भाईजान, जब रौलेट ऐक्ट के ख़िलाफ़ सारे पंजाब में एजीटेशन हो रहा था। मैं अमृतसर की बात कर रहा हूँ। सर माईकल ओडवायर ने डिफ़ेन्स ऑफ़ इण्डिया रूल्ज़ के मातहत गांधी जी का दाख़िला पंजाब में बन्द कर दिया था। वो इधर आ रहे थे कि पलवाल के मुक़ाम पर उनको रोक लिया गया और गिरफ़्तार करके वापस बम्बई भेज दिया गया। जहाँ तक में समझता हूँ, भाईजान, अगर अँग्रेज़ ये ग़लती न करता तो जलियाँवाला बाग़ का हादसा उस की हुक्मरानी की स्याह तारीख़ में ऐसे ख़ूनीं वर्क़ का इज़ाफ़ा कभी न करता। क्या मुसलमान, क्या हिन्दू, क्या सिख, सब के दिल में गांधी जी की बेहद इज़्ज़त थी। सब उन्हें महात्मा मानते थे। जब उन की गिरफ़्तारी की ख़बर लाहौर पहुँची तो सारा कारोबार एकदम बन्द हो गया। यहाँ से अमृतसर वालों को मालूम हुआ, चुनाँचे यूँ चुटकियों में मुकम्मल हड़ताल हो गई। कहते हैं कि नौ अप्रैल की शाम को डाक्टर सत्यपाल और डाक्टर किचलू की ज़िलावतनी के आर्डर डिप्टी कमिशनर को मिल गए थे। वो उन की तामील के लिए तैयार नहीं था क्योंकि उसके ख़्याल के मुताबिक़ अमृतसर में किसी हैजान-ख़ेज बात का ख़तरा नहीं था। लोग पुरअम्न तरीक़े से एहितजाजी जलसे वग़ैरा करते थे। जिनसे तशद्दुद का सवाल ही पैदा नहीं होता था। मैं अपनी आँखों देखा हाल बयान करता हूँ। नौ को रामनवमी थी।। जलूस निकला मगर मजाल है जो किसी ने हुक्काम की मर्ज़ी के ख़िलाफ़ एक क़दम उठाया हो, लेकिन भाईजान, सर माईकल अजब औंधी खोपड़ी का इनसान था। उस ने डिप्टी कमिशनर की एक ना सुनी। उस पर, बस, यही ख़ौफ़ सवार था कि ये लीडर महात्मा गांधी के इशारे पर सामराज का तख़्ता उलटने के दर पे हैं और जो हड़तालें हो रही हैं और जलसे मुनअक़िद होते हैं उनके पस-ए-पर्दा यही साज़िश काम कर रही है।